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सोहन अपने परिवार के साथ एक छोटे कस्बे मे रहता था।उसके पिता श्यामालाल एक छोटे किसान थे। घर मे गरीबी का बास था और श्यामालाल रोजी रोटी भर का कमा पाता था। सोहन की दो बहने और एक बूढ़ी माँ थी। श्यामालाल को लड़कियों की शादी की चिन्ता भी सताने लगी थी। श्यामालाल सोचता कि चार या पाँच साल बाद बेटियों का ब्याह करना होगा और उसके पास जमा पूँजी के नाम परएक फूटी कौढ़ी भी नही है। सोहन नौकरी के लिए पढ़ाई कर रहा था। पढ़ाई के लिए वह कस्बे के कुछ बच्चों को ट्यूसन पढ़ा के कमा लेता था। सोहन का एक दोस्त था राजू। राजू के पिता रेलवे मे नौकरी करते थे। राजू के घर मे सुख सुबिधाओं की कोई कमी नही थी।एक दिन सोहन ने अपने पिता से पूछा कि राजू के घर मे खूब सम्पन्नता है परन्तु पिता जी आप राजू के पिता से होशियार थे फिर आपकी नौकरी क्यों नही लगी। श्यामालाल ने अपने बेटे को बताया कि बेटा हम लोग जनरल कोटे मे आते हैं और वे लोग एस सी कोटे मे हाँलाकि मेरे अंक उनसे अधिक थे परन्तु सरकार से आरक्षण के चलते राजू के पिता को नौकरी मिल गयी।श्यामालाल ने बेटे को समझाया कि बेटा तुम्हे इतना पढ़ना है कि तुम इन आरक्षण की बेड़़िओं को तोड़कर आगे निकल जाओ। सोहन ने कहा पिता जी मेरे हिसाब से आरक्षण का मानक व्यक्ति की गरीबी को बनाया जाना चाहिए ना कि जाति क्योंकि इससे एक जाति विशेष की तरक्की होगी ना कि पूरे देश की।सोहन के हिसाब से सरकार को प्रत्येक जाति के गरीब की मदद करनी चाहिए ना कि किसी विशेष की। इन सब बातों के बाद सोहन को महसूस हुआ कि वह अपने पिता का एक मात्र सहारा है इसलिए सुविधाओं के अभाव मे ही उसे आगे बढ़ना है । उसने कठोर परिश्रम शुरू कर दिया।इधर चिन्ताओ और अतिशय मेहनत के कारण श्यामालाल की हालत अचानक खराब हो गयी और उन्हे अस्पताल मे दाखिल होना पड़ा । परिवार की हालत पहले ही ठीक नही थी और श्यामालाल की बीमारी के चलते सोहन को बीस हजार रुपए उधार लेने पड़े। कुछ दिनो बाद श्यामालाल को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी और वे घर आ गये। इधर सोहन की परीक्षा निकट आ रही थी। घर की तमाम जिम्मेदारिओं के बाद भी सोहन ने कठोर परिश्रम जारी रखा । श्यामालाल को भी बेटे पर बहुत भरोसा और नाज था। घर के सभी सदस्य जो गरीबी के अँधेरे मे जी रहे थे उन्हे सोहन ही एक मात्र प्रकाश की किरण दिखाई दे रहा था। आखिर कुछ दिनों बाद परीक्षा का बो दिन भी आ गया जो श्यामालाल के आगे के दिन बदलने बाला था।सोहन अपने दोस्त राजू के साथ परीक्षा देने गया। राजू भी उसी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। सोहन का पेपर बहुत अच्छा हुआ परन्तु राजू कुछ उदास था उसे अपने चुने जाने की उम्मीद कम थी। समय गुजर गया और अन्तिम परिणाम के दिन सभी उत्साहित थे। परन्तु सोहन के अंक अधिक होने पर भी उसका चयन नही हुआ और राजू चयनित हो गया। आरक्षण के नाग ने असहाय बाप के बेटे को भी डस लिया। परिस्थितियाँ बिपरीत हो गयी ऐसा लगता था मानो ईश्वर ने भी अपना फैसला सोहन के बिपरीत सुना दिया था।रात को उनके घर खाना तो बना पर किसी के मुँह मे ना चला। सोहन को आधी रात तक नीद नही आयी। अधिक अंक होने के बावजूद उसका चयन नही हुआ आखिर वह अधिक गरीब था औऱ राजू के घर मे तो पैसे की कमी नही थी। परन्तु वह इऩ पुराने नियमों को बदल लही सकता था। क्योंकि वह तो एक छोटे कस्बे मे रहने बाला गरीब किसान का बेटा था कानून के ठेकेदार कुछ और ही लोग थे । सुबह हुयी सोहन के कमरे का दरबाजा देर तक नही खुला। बहन ने दरवाजे पर हाँथ मारा तो दरबाजा खुला ही था।अंदर देखते ही वो सुन्न रह गयी। उसका होनहार भाई फाँसी पर झूल रहा था।घर मे हाहाकार मच गया बूढ़े माँ बाप छाती पीटपीट कर रोने लगे। उनकी रोशनी की किरण बुझ गयी थी उन्हे हमेशा अँधेरे मे रहने का दुख और अपने लाड़ले बेटे को खोने का गम था।
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